Salary structure | जानिए,क्या हो सैलरी स्ट्रक्चर

कई कंपनियों में अक्सर सवाल उठता है कि Salary structure (सैलरी स्ट्रक्चर) क्या होना चाहिए यानी कितनी सैलरी देनी होगी | 

अगर आप Salary structure (सैलरी स्ट्रक्चर) संबंधित कुछ आवश्यक बातें जानना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को अवश्य पढ़ें, यह काफी मददगार साबित होगा | 

Salary structure के लिए इन बातों का रखें ध्यान 

TDS – टैक्स नियमों के अनुसार एम्पलाई की सालाना सैलरी 5 नागपुरी पैसे ज्यादा है तो सैलरी से TDS काटना जरूरी है | 

PF – अगर आपकी कंपनी में 20 से ज्यादा एंप्लॉय हैं तो उन्हें Provident Fund (PF)देना जरूरी है | इसके लिए EPFO मैं रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है | अधिक जानकारी के लिए ऑफिशल वेबसाइट epfindia.gov,in पर जाएं | 

ESIC – अगर कंपनी में 10 से ज्यादा एंप्लॉय हैं तो कंपनी की जिम्मेदारी है कि हर एंप्लॉय Employees State Insurance Corporation (ESIC) में रजिस्टर हो | ज्यादा जानकारी के लिए esic,gov.in पर जाएं | 

लेबर लॉ – कंपनी को लेबर लॉ से जुड़ी पूरी जानकारी होनी चाहिए | इसमें एम्पलाई के लिए मिनिमम वेज, काम के घंटे, छुट्टियां आदि शामिल होती है | 

अटेंडेंस – एंप्लॉय रोजाना ऑफिस समयपर आए-जाए और छुट्टियों का हिसाब रहे, इसके लिए अटेंडेंस सिस्टम जरूर होना चाहिए | 

ऑफिस में बायोमेट्रिक सिस्टम रखें और अगर घर से काम है तो ऑनलाइन अटेंडेंस सिस्टम रख सकते हैं |

मेडिकल रूम – ऑफिस में एम्पलाई की सेहत सही रहे, इसके लिए बेहतर होगा कि ऑफिस में एक मेडिकल रूम हो, जिसमें MBBS डॉक्टर होना चाहिए | 

साथ ही फर्स्ट एड किट और जरूरी दवाइयां भी होनी चाहिए | सभी एंपलाई को मेडिकल इंश्योरेंस देना भी जरूरी है | 

नोट – अप्लाई को दी जाने वाली सैलरी और टैक्स संबंधित चीजों के लिए किसी सीए की मदद लें | लेबर लॉ व दूसरे कानूनी पहलुओं को बारीकी से जानने के लिए किसी लेबर लॉ एक्सपर्ट की मदद लें | 

Salary structure के लिए कैसी हो सैलरी 

कंपनी के काम से जुड़े किसी भी व्यक्ति की सैलरी कैसी और कितनी होगी, उस व्यक्ति के कंपनी से जुड़ने के तरीके पर निर्भर करता है | जो मुख्यतः 3 तरह के होते हैं जैसे:- 

1) पे-रोल पर – अगर कोई व्यक्ति किसी कंपनी से पे-रोल पर जुड़ा है तो हर महीने एक निश्चित तारीख पर उसकी सैलरी आती है | उसे PF,ESIC, HRA आदि की सुविधाएं मिलती है | 

यही नहीं, उसे कंपनी की तरफ से साल भर में तो छुट्टियां भी दी जाती है और समय-समय पर सैलरी इंक्रीमेंट और प्रमोशन भी होता है | 

अगर कोई व्यक्ति किसी कंपनी में पे-रोल पर है तो वह किसी दूसरी कंपनी में या दूसरी कंपनी का काम नहीं कर सकता है | 

2) कॉन्ट्रैक्ट बेस – कंपनी में कई एंपलाई होते हैं जो कॉन्ट्रैक्ट बेस पर होते हैं यानी वे कुछ समय के लिए काम करते हैं, उन्हें उतने समय की पेमेंट दी जाती है और फिर कॉन्ट्रैक्ट कांटेक्ट खत्म | 

यह कॉन्ट्रैक्ट 1 दिन से लेकर 1 साल या 2 साल या इससे ज्यादा समय का भी हो सकता है | इन कामों में कंस्ट्रक्शन, इंस्टॉलेशन आदि शामिल है | कंपनी चाहे तो काम के अनुसार कॉन्ट्रैक्ट को आगे भी बढ़ा सकती है | 

3) फ्री-लांसर – कई कंपनियां अपने यहां फ्री-लांसर भी रखती हैं | उन्हें कंपनी हर महीने तय सैलरी देती है | यह फ्री-लांसर कंपनी के नियमों से जुड़े हुए नहीं होते | 

इन्हें कंपनी की ओर से दी जाने वाली PF, ESIC, HRA आदि की सुविधाएं नहीं मिलती है | साथ ही छुट्टियों से जुड़े नियम भी लागू नहीं होते | 

कंपनी चाहे तो महीने में 4 या इससे ज्यादा छुट्टियां तय कर सकती है | इससे ज्यादा छुट्टियां लेने पर सैलरी में से कटौती की जाती है |

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