Pitru paksha 2023 | पितरों का पर्व है श्राद्ध,भक्ति पूर्वक करें तर्पण

ऋषियों ने हमारे संपूर्ण जीवन चक्र को 16 संस्कारों में बंधा है | जहां गर्भाधान प्रथम संस्कार है तो पितृ मेघ या अंत्येष्टि अंतिम संस्कार है | 

जानिए Pitru paksha 2023 गरुड़ पुराण के अनुसार पितृक श्लोक:- 

अर्चितानामामूर्तना पितृणादीप्त तेजसां !

नमस्यामि सदातेसंध्यानिना दिव्य चक्षुनाम !!   

अर्थात जो सबके द्वारा सेवित,पूजित अमूर्त तेजस्वी है,उन पितरों को मैं सदा नमन करता हूं |  

भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक 16 दिनों को पितृ पक्ष कहा जाता है | शास्त्रों में मनुष्यों पर उत्पन्न होते ही तीन ऋण बताए गए हैं तो आईए जानते हैं Pitru paksha 2023:-

देवऋण 

ऋषिऋण 

पितृऋण  

श्राद्ध के द्वारा पितृऋण से निवृत्ति प्राप्त होती है | जिन माता-पिता ने हमारी आयु, आरोग्य और सुख सौभाग्य आदि की वृद्धि के लिए अनेक प्रकार के प्रयत्न किए और कष्ट सहे, उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म ग्रहण करना निरर्थक हो जाता है |   

इसलिए Pitru paksha 2023 (पितृपक्ष) के दौरान भक्ति पूर्वक तर्पण (पितरों को जल देना) करना  चाहिए | 

मृत्यु किसी भी मास या पक्ष में हुई हो जल, तिल, चावल, जौ और कुश पिंड बनाकर या केवल संकल्प विधि से उनका श्राद्ध करना चाहिए |

गौ को घास खिलाना और उनके निमित्त ब्राह्मणों को भोजन करा देने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनकी प्रसन्नता से ही पितृऋण से मुक्ति मिलती है |

पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का अनुष्ठान है श्राद्ध  

श्राद्ध पांच  प्रकार के होते हैं, जिनमें पितृपक्ष के श्राद्ध पावर्ण श्राद्ध कहलाते हैं | इनमें अपराहन व्यापिनि तिथि की प्रधानता है |

जिसकी मृत्यु तिथि का ज्ञान ना हो उनका श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए | श्राद्ध हमेशा मृत्यु होने वाले दिन करना चाहिए |

अग्नि में जलकर,जहर खाकर, दुर्घटना में या पानी में डूब कर,शस्त्र आदि से जिनकी मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करना चाहिए | 

आश्विन कृष्ण पक्ष में सनातन संस्कृति को मानने वाले सभी लोगों को प्रतिदिन अपने पूर्वजों का श्रद्धा पूर्वक स्मरण करना चाहिए |  

इससे पितर संतृप्त होकर हमें आशीर्वाद देते हैं | Pitru paksha 2023 आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितरों के लिए पर्व का समय है |

इसमें पितर पिंडदान और तिलांजलि की आशा लेकर पृथ्वी लोक पर आते हैं | इसलिए श्राद्ध का प्रत्याग न करें, पितरों को संतुष्ट जरूर करें | 

यह है श्राद्ध के प्रतीक  

कुश,तिल, यव गाय,कौवा और कुत्ते को श्राद्ध के तत्व के प्रतीकके रूप में माना जाता है | कुशा के अग्र भाग में ब्रह्मा,मध्य में विष्णु और मूल भाग में भगवान शंकर का निवास माना गया है | 

कौवा यम का प्रतीक है,जो दिशाओं का फलित बताता है | गाय तो वैतरणी से पर लगाने वाली है ही | हमारे दैनिक जीवन में भी भोजन की पहली रोटी गाय को देते हैं | 

ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध का एक अंश कुत्ते को देने से भी यमराज प्रसन्न होते हैं |  

संयत रहकर श्राद्ध करें  

देव कार्य, पूजा – अनुष्ठान,उद्यापन,कथा विवाह आदि में चाहे ब्राह्मणों की परीक्षा ना करें,लेकिन पितृ कार्य में अवश्य करें |

समस्त लक्षणों से युक्त, हाथ का सच्चा, व्याकरण का विद्वान, स्नेह एवं सद्गुणों से युक्त, तीन पीढियां से विख्यात ब्राह्मणों के द्वारा संयत रहकर श्राद्ध कर्म संपन्न करना चाहिए | 

श्राद्धकर्ता के लिए वर्जित

श्राद्धकर्ता को पितृ पक्ष में संयम से रहना चाहिए | इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक माना गया है | 

पान खाना,किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ का सेवन,तेल मालिश आदि श्राद्धकर्ता के लिए वर्जित बताई गई है | इतना ही नहीं श्राद्ध केअंत में क्षमा प्रार्थना जरूर करनी चाहिए |   

पितृपक्ष में श्राद्ध – Pitru paksha 2023  शुक्रवार 29 सितंबर से शनिवार 14 अक्टूबर तक 

पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म महालयारंभ            29 सितंबर    

प्रतिपदा का श्राद्ध पितृ पक्ष आरंभ            29 सितंबर   

द्वितीया का श्राद्ध                                   30 सितंबर   

तृतीया का श्राद्ध                                    1 अक्टूबर   

चतुर्थी का श्राद्ध                                     2 अक्टूबर  

पंचमी का श्राद्ध                                     3 अक्टूबर   

षष्टि का श्राद्ध                                        4 अक्टूबर  

सप्तमी का श्राद्ध                                    5 अक्टूबर     

अष्टमी का श्राद्ध                                     6 अक्टूबर  

नवमी सौभाग्यवतीना का श्राद्ध                  7 अक्टूबर   

दशवीं का श्राद्ध                                      8 अक्टूबर  

एकादशी का श्राद्ध                                  9 अक्टूबर   

मघा श्रद्धा                                              10 अक्टूबर  

द्वादशी / संन्यासियों का श्राद्ध                     11 अक्टूबर   

त्रयोदशी का श्राद्ध                                   12 अक्टूबर 

चतुर्दशी श्राद्ध अप मृत्यु वालों का श्राद्ध        13 अक्टूबर   

अमावस्या,सर्वपितृ,अज्ञात मृत्यु                   14 अक्टूबर

तिथि वालों का श्राद्ध