Makar sankranti ka mahatwa | जानिए,यह पर्व क्यों मनाते हैं ?

दोस्तों, मकर संक्रांति हमारे देश का प्रमुख त्योहार माना जाता है | इस लेख के माध्यम से आज हम Makar sankranti ka mahatva क्या है ? और इसे क्यों मनाया जाता है इसके बारे में चर्चा करेंगे | जानकारी के लिए इस लेख को आप आज तक  पढ़ें |  

तो आइए, वक्त ना खराब करते हुए विस्तार से जानते हैं Makar sankranti ka mahatva क्या है ?

कहा जाता है कि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था | 58 दिन बाणों की शैया पर बिताने के बाद मकर सक्रांति को भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागे थे | 18 दिनों तक चले महाभारत के युद्ध में 10 दिन लगातार भीष्म पितामह लड़े थे | 

महर्षि वेदव्यास की महान रचना महाभारत ग्रंथ के प्रमुख पात्र भीष्म पितामह हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वह एकमात्र ऐसे पात्र थे जो महाभारत में शुरुआत से अंत तक बनी रहे | 18 दिनों तक चले महाभारत के युद्ध में 10 दिन तक लगातार भीष्म पितामह लड़े थे | 

भीष्म पितामह के युद्ध कौशल से व्याकुल पांडवों को स्वयं पितामह ने अपनी मृत्यु का उपाय बताया | भीष्म पितामह 58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहे लेकिन अपना शरीर नहीं त्यागा | क्योंकि वे चाहते थे कि जिस दिन सूर्य उत्तरायण होगा तभी वे अपने प्राणों का त्याग करेंगे | 

Makar sankranti ka mahatva क्या है ?  

1.) भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था इसलिए उन्होंने स्वयं ही अपने प्राणों का सूर्य उत्तरायण यानी कि मकर संक्रांति के दिन अपने प्राण प्यारे थे |  

2.) जिस समय महाभारत का युद्ध चला, कहा जाता है उस समय अर्जुन की उम्र 55 वर्ष, भगवान कृष्ण की उम्र 83 वर्ष और भीष्म पितामह की 150 वर्ष के लगभग थी | 

3.) भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का  वरदान स्वयं उनके पिता राजा शांतनु द्वारा दिया गया था क्योंकि अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए भीष्म पितामह ने अखंड ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ली थी | 

4.) कहते हैं कि भीष्म पितामह के पिता राजा शांतनु एक कन्या से विवाह करना चाहते थे जिसका नाम सत्यवती था |  लेकिन सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु से अपनी पुत्री का विवाह तभी करने की शर्त रखी जब सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न शिशु को ही वे अपने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करेंगे | 

मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है 

यह  पर्व प्रत्येक वर्ष जनवरी महीने में ही मनाया जाता है इस वर्ष 2023 में मकर संक्रांति 15  जनवरी को मनाया जाएगा | सनातन धर्म में इस त्यौहार का अपना एक अलग ही महत्व है | आज के दिन ही सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं | इसलिए मकर संक्रांति का त्योहार भारतीय सनातन धर्म के लोग बहुत ही उत्साह पूर्वक मनाते हैं |  

मकर संक्रांति पर्व को उत्तरायण भी कहा जाता है | सूर्य 14 जनवरी के बाद से उत्तर दिशा की ओर अग्रसर हो जाता है इसलिए इसको उत्तरायण कहते हैं | वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका मुख्य कारण पृथ्वी का लगातार छह महीने की अवधि के उपरांत उत्तर से दक्षिण की ओर वलन कर लेना होता है | 

एक ऐसी भी मान्यता है कि कुंभ राशि में सब कुछ जल चुका था | ऐसी स्थिति में शनि महाराज के पास सिर्फ तिल के अलावा कुछ भी नहीं था | फिर उन्होंने सूर्य देव की पूजा भी काले तिल से ही की थी,शनिदेव की इस पूजा को देखकर भगवान सूर्यदेव प्रसन्न हुए |

उन्होंने शनि  को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि मेरे आने पर धन्य धन्य से भरपूर हो जाएगा | काले तिल से पूजा करने के कारण ही शनिदेव को दोबारा वैभव प्राप्त हुआ | काला तिल शनि देव को अत्यंत प्रिय है इसलिए मकर संक्रांति के अवसर पर सूर्य भगवान एवं शनि की पूजा काले तिल से ही की जाती है |

मकर संक्रांति पर निबंध 

मकर संक्रांति  एक राशि से दूसरी राशि में जाने को ही संक्रांति कहते हैं | एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास है | वैसे तो सूर्य संक्रांति 12 हैं, लेकिन इसमें से चार संक्रांति महत्वपूर्ण है जिसमें मेष, कर्क, तुला और मकर | सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने का नाम ही मकर संक्रांति है | 

धनु राशि बृहस्पति की राशि है | इसमें सूर्य के रहने पर मलमास होता है | इस राशि से मकर राशि में प्रवेश करते ही मलमास समाप्त होता है और शुभ मांगलिक कार्य हम प्रारंभ करते हैं | इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है | शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है | 

मकर संक्रांति के दिन पूर्वजों को तर्पण और तीर्थ स्नान का अपना विशेष महत्व है | इससे देव और पित्र सभी संतुष्ट रहते हैं | सूर्य पूजा से और दान से सूर्य देव की रश्मियों का शुभ प्रभाव मिलता है और अशुभ प्रभाव नष्ट होता है | इस दिन स्नान करते समय आसमान के जल में तिल, आमला, गंगाजल डालकर स्नान करने से शुभ फल प्राप्त होता है | 

मकर संक्रांति का दूसरा नाम उत्तरायण भी है क्योंकि इसी दिन से सूर्य उत्तर की तरफ चलना प्रारंभ करते हैं | उत्तरायण के इन 6 महीनों में सूर्य के मकर से मिथुन राशि में भ्रमण करने पर दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं | इस दिन विशेषत: तिल और गुड़ का दान किया जाता है | 

इसके अलावा खिचड़ी, तेल से बने भोज्य पदार्थ भी किसी गरीब ब्राह्मण को खिलाना चाहिए | छाता, कंबल, जूता, चप्पल, वस्त्र आदि का दान भी किसी असहाय या जरूरतमंद व्यक्ति को दान करना चाहिए |  

राजा सागर के 60,000 पुत्रों को कपिल मुनि ने किसी बात पर क्रोधित होकर खत्म कर दिया था | इसके पश्चात इन्हें मुक्ति दिलाने के लिए गंगा अवतरण का प्रयास प्रारंभ हुआ ! इसी क्रम में राजा भागीरथ ने अपनी तपस्या से गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया | 

स्वर्ग से उतरने में गंगा का वेग अति तीव्र था इसलिए शिव जी ने अपनी जटाओं में धारण किया | अब भागीरथ उनके आगे-आगे और गंगा उनके पीछे-पीछे चलने लगी | इस प्रकार गंगा गंगोत्री से प्रारंभ होकर हरिद्वार, प्रयाग होते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंची यहां आकर सागर पुत्रों का उद्धार किया | 

यही आश्रम अब गंगासागर तीर्थ के नाम से जाना जाता है | मकर संक्रांति के दिन ही राजा भागीरथ ने अपने पुरखों का तर्पण कर तीर्थ स्नान किया था | इसी कारण गंगासागर में मकर संक्रांति के दिन स्नान और दर्शन को मोक्ष दायक माना है | भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था | 

इसलिए उन्होंने सरसैया पर लेटे हुए दक्षिणायन के बीतने का इंतजार किया और उत्तरायण में अपनी देह का त्याग किया | उत्तरायण काल में ही सभी देवी-देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा शुभ मानी जाती है | धर्म-सिंधु के अनुसार मकर संक्रांति का पुण्य काल संक्रांति समय से 16  घटी पहले और 40 घटी बाद तक माना गया है | 

भारतीयों का प्रमुख पर्व मकर संक्रांति अलग-अलग राज्यों, शहरों और गांवों में वहां की परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है | इसी दिन से अलग-अलग राज्यों में गंगा नदी के किनारे माघ मेला या गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है | कुंभ के पहले स्नान की शुरुआत भी इसी दिन से ही होती है | 

मकर संक्रांति का त्यौहार विभिन्न राज्यों में अलग-अलग तरीके से बनाने का तरीका:- 

बिहार और उत्तर प्रदेश – मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है | सूर्य की पूजा की जाती है | चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है | 

गुजरात और राजस्थान – उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है | पतंग उत्सव का आयोजन भी किया जाता है | 

तमिलनाडु – किसानों का यह पर्व पोंगल के नाम से मनाया जाता है | देसी घी मैं दाल चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है |  

महाराष्ट्र – लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं | 

पश्चिम बंगाल – हुगली नदी पर गंगासागर मेले का आयोजन किया जाता है | 

असम – भोगली बिहू के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है |  

पंजाब – 1 दिन पूर्व लोहरी पर्व के रूप में मनाया जाता है | काफी धूमधाम के साथ समारोह का आयोजन भी किया जाता है |

साथियों, इस आर्टिकल के माध्यम से हमने Makar sankranti ka mahatwa क्या है ? और कैसे  मनाते हैं इसकी पूरी जानकारी दी है | मुझे उम्मीद है कि आप को या लेख अवश्य पसंद आया होगा | इस लेख को आप अपने दोस्तों के साथ शेयर करें ताकि उन्हें भी इसकी जानकारी प्राप्त हो |