दोस्तों, आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को दुनिया छोड़े 75 साल हो गए हैं | 30 जनवरी 1948, यही वह दिन था जब “अहिंसा” की लाठी थामे बापू के सीने में 3 फीट दूरी से 3 गोलियां उतार दी गई जिससे Mahatma Gandhi की death हो गई | इन 75 साल में बापू पर अनेकों किताब, किस्से कहानियां और कविताएं लिखी गई |
लगभग सबने सुना, पढ़ा,कि गोली लगते ही बापू के मुंह से निकले आखरी बोल “हे राम” थे | यहां तक कि राजघाट पर बापू की समाधि स्थल पर भी “हे राम” लिखा है | लेकिन, क्या आपको पता है mahatma Gandhi death का कोई पुख्ता प्रमाण है ? जो है, वह ऐसा दस्तावेज है जिसे न मिटाया जा सकता, न हटाया जा सकता है |
उसी दस्तावेज से कातिल नाथूराम गोडसे को सजा सुनाई गई | जी हां, दोस्तों यह दस्तावेज हैं बापू की हत्या की “एफआईआर” | जिसमें साफ-साफ लिखा है, गोली लगते ही महात्मा गांधी के आह भरते हुए मुंह से निकले आखरी बोल थे – “राम राम” |
दोस्तों आपको बता दूं कि यह एफआईआर आज भी दिल्ली पुलिस के संग्रहित रिकॉर्ड में सुरक्षित है | 30 जनवरी 1948 को दिल्ली के तुगलक थाने में “एफआईआर” नंबर 68, आईपीसी 302 के तहत उस रात 9:45 बजे Mahatma Gandhi death (हत्या) का केस दर्ज हुआ था |
बापू के करीबी और हत्या के चश्मदीद कनॉट प्लेस निवासी नंदलाल मेहता के बयान पर दर्ज की गई थी | बापू की हत्या के जांच अफसर तुगलक रोड पुलिस थाने के तत्कालीन एसएचओ दसौधा सिंह थे | उर्दू में लिखी इस एफआईआर का हिंदी अंग्रेजी अनुवाद भी है |
नंदलाल का बयान और एफआईआर के मुताबिक, 30 जनवरी 1948 बिरला हाउस शाम के 5:10 बजे थे | तभी बापू बिरला भवन में अपने कमरे से प्रार्थना सभा के लिए बाहर निकले | उनके साथ आभा गांधी और मनु गांधी भी थी | गांधी सीढ़ियों से आगे कुछ कदम चले थे कि भीड़ में से एक आदमी आगे बढ़ा |
उसने गांधी के सामने झुक कर नमस्ते करने का ड्रामा किया | फिर अचानक 3 फुट के फासले से उसने पिस्तौल से तीन फायर किए | बापू के पेट और छाती से खून निकलना शुरू हो गया | महात्मा जी राम-राम कहते हुए गिर पड़े | एफआईआर में लिखा है बापू को बेहोशी की हालत में उठाकर बिरला हाउस के रिहायशी कमरे में ले गए और उनका उसी समय निधन हो गया |
हत्या में हथेली से छोटे साइज की पिस्टल की गई इस्तेमाल (A pistol smaller than the palm was used in the murder)
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बापू की हत्या जिस पिस्टल से की गई, इसका साइज हथेली में समा जाने वाला था | गोली बेरेटा M-1934 सेमी-ऑटोमेटिक पिस्टल चैंबर्ड इन.380 एसीपी से मारी गई थी | जिसका सीरियल नंबर 606824 है | इससे पहले भी बापू की हत्या की नाकाम कोशिश हुई थी |
यह पिस्टल दत्तात्रेय परचुरे और गंगाधर दंडवते की मदद से खरीदी और 29 जनवरी, 1948 को यानी एक दिन पहले ही बापू की हत्या करने के लिए दिल्ली पहुंच गए थे | यह लोग दिल्ली रेलवे स्टेशन के रिटायरिंग रूम 6 में ठहरे थे |
हत्या का ऐसा केस, जिसमें नहीं हुआ पोस्टमार्टम (Such a case of murder in which there was no postmortem)
राष्ट्रपिता Mahatma Gandhi death (हत्या) का केस ऐसा बिरला उदाहरण है जिसमें पोस्टमार्टम नहीं किया गया और ना ही, ऑटोप्सी हुई | गोली लगने के तुरंत बाद अस्पताल भी नहीं ले जाया गया था | इस संवेदनशील केस की सुनवाई लाल किले में विशेष अदालत बनाकर शुरू की गई थी |
उनकी अदालत ने नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा सुनाई थी | बाकी 5 लोगों गोपाल गोडसे, विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, शंकर किस्तैया और दत्तात्रेय परचुरे को उम्र कैद की सजा मिली | बाद में हाईकोर्ट ने शंकर किस्तैया और परचुरे को बड़ी कर दिया था |
महात्मा गांधी जन्म तिथि (Mahatma Gandhi date of birth)
महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था | महात्मा गांधी का जन्म भारत में गुजरात राज्य के पोरबंदर में 2 अक्टूबर,1869 को हुआ था | (मृत्यु 30 जनवरी, 1948, दिल्ली), वह भारतीय वकील, राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक थे | जो अंग्रेजों के खिलाफ राष्ट्रवादी आंदोलन के नेता बने |
उन्हें अपने देश का पिता माना जाने लगा | गांधी को राजनीतिक और सामाजिक प्रगति हासिल करने के लिए अहिंसक विरोध (सत्याग्रह) के अपने सिद्धांत के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जाता है | अपने लाखों साथी भारतीयों की नज़र में Mahatma gandhi (“महान आत्मा”) थे |
उनके दौरों के दौरान उन्हें देखने के लिए एकत्रित हुई भारी भीड़ की अविचलित आराधना ने उन्हें एक गंभीर परीक्षा बना दिया | वह मुश्किल से दिन में काम कर कर पाते थे और न ही रात में आराम | उनकी ख्याति उनके जीवनकाल में ही दुनिया भर में फैल गई और उनकी मृत्यु के बाद ही बढ़ी | महात्मा गांधी का नाम अब पृथ्वी पर सबसे अधिक मान्यता प्राप्त नामों में से एक है |
महात्मा गांधी पिता का नाम (Mahatma Gandhi father name)
महात्मा गांधी के पिता जी का नाम करमचंद उत्तमचंद गांधी था | जिन्हें काबा गांधी के नाम से भी जाना जाता है, वह पोरबंदर में एक राजनीतिक व्यक्ति थे | उन्होंने पोरबंदर, राजकोट और वांकानेर के दीवान के रूप में कार्य किया | उनके पूर्वज कुटियाना (तब जूनागढ़) गाँव से, गांधी परिवार की उत्पत्ति हुई |
17 वीं शताब्दी के अंत या 18 वीं शताब्दी के प्रारंभ में, लालजी गांधी पोरबंदर चले गए और अपने शासक, राणा की सेवा में प्रवेश किया | उत्तमचंद से पहले राज्य प्रशासन में सिविल सेवकों के रूप में परिवार की कई पीढ़ियों ने सेवा की, करमचंद के पिता, पोरबंदर के तत्कालीन राणा, खिमोजीराज के तहत 19 वीं सदी की शुरुआत में दीवान बन गए |
1831 में, राणा खिमोजीराज की अचानक मृत्यु हो गई और उनके 12 वर्षीय इकलौते पुत्र विक्रमजी ने उनकी जगह ली | परिणामस्वरूप, राणा खिमोजीराज की विधवा, रानी रूपालीबा, अपने बेटे के लिए राज-प्रतिनिधि बन गई | उन्हें मज़बूरी के कारण जूनागढ़ लौटना पड़ा |
जूनागढ़ में, उत्तमचंद अपने नवाब के सामने उपस्थित हुए और अपने दाहिने हाथ के बजाय उन्हें अपने बाएं हाथ से सलामी दी, और जवाब दिया कि उनका दाहिना हाथ पोरबंदर की सेवा में लगाया गया है | 1841 में, विक्रमजी ने सिंहासन ग्रहण किया और उत्तमचंद को अपना दीवान बनाया |
अपने पिता, उत्तमचंद गांधी की तरह, करमचंद पोरबंदर के स्थानीय शासक राजकुमार का एक अदालत अधिकारी या मुख्यमंत्री बन गया था | करमचंद के कर्तव्यों में पोरबंदर के शाही परिवार को सलाह देना और अन्य सरकारी अधिकारियों को काम पर रखना शामिल था |