Durva Akshat Mantra | जानिए,आवश्यक व्यवहारिक मंत्र विधि और अर्थ

दूर्वाक्षत मंत्र – Durva Akshat Mantra : विधि और अर्थ   

मिथिला मे दूर्वाक्षत मंत्र (Durva Akshat Mantra) का बहुत उपयोगिता है | शादी-विवाह, या उपनयन संस्कार आदि शुभ कार्य मे तो कई  बार दूभि-अक्षत से आशीष देने का विधान है | जिन लोगों को दूर्वाक्षत मंत्र पढ़ना आता है, ऐसे लोग समाज में कम होते जा रहे हैं | आज के समय में आप इन्टरनेट पर मंत्र को सर्च करके पढ़कर आशीर्वाद दे सकते हैं | 

दूर्वाक्षत मंत्र – (Durva Akshat Mantra) संस्कृत में

ॐ आब्रह्मन्‌ ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर इषयौऽतिव्याधि महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुर्वोढाऽनड्‌वानाशुः सप्ति: पुरन्ध्रिर्योषा विष्णु रथेष्ठा सभेयो युवाऽस्य यजामानस्य विरो जायताम्‌ । निकामे निकामे नः पर्ज्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न औषधयः पच्यन्ताम्‌ योगक्षेमो न: कल्पताम्‌ मन्त्रार्था: सिद्धयः सन्तु पूर्णा सन्तु मनोरथा:। शत्रुणां बुद्धिनाशोस्तु मित्राणामुदयस्तव।      

दूर्वाक्षत (Durva Akshat) देने की विधि

उम्र में बड़े और शादीशुदा पांच व्यक्ति (या अधिक) पुरुष अपने माथे पर रुमाल रखकर अपने हाथ में दूभि, धान, अक्षत (चावल) लेकर दूर्वाक्षत मन्त्र पढ़ने के उपरांत तीन बार दीर्घायु भवः, दीर्घायु भवः, दीर्घायु भवः पढ़ते हुए हाथ  से दूभि, धान अक्षत दूल्हा-दुल्हन या बरुआ के ऊपर फेक कर एक बार बैठकर उठ के आशीर्वाद दिया जाता है |

नोट: दूल्हा- दुल्हन संग रहने पर तीन बार दीर्घायु भवः और तीन बार सौभाग्यवती भवः कहकर आशीर्वाद दिया जाता है |

दूर्वाक्षत मन्त्र (Durva Akshat Mantra) का अर्थ

हे भगवान अपने देश में सुयोग्य और सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न हों, और शत्रु का नाश करने वाले सैनिक उत्पन्न हों | 

अपने देश का गाय खूब दूध दें, बैल भार वहन करने में सक्षम  हों, और घोड़ा त्वरित रुप से दौड़ने वाले हों, महिलाएं 

समाज में  नतृत्व करने में सक्षम हों, और युवक सभा में ओजपूर्ण भाषण देने वाले  और नेतृत्व करने में सक्षम हों | 

अपने देश में जब आवश्यकता हो तब बारिश हो , और औषधिक जड़ी-बूटी सर्वदा परिपक्व  होते रहे | एवं सभी 

प्रकार से हम लोगों का कल्याण हों, शत्रु का बुद्धि नाश हो। मित्र का उदय हो | 

जनेऊ मंत्र ( Janeu Mantra)

जब कभी नया जनेऊ पहनना हो तो जनेऊ पहनने से पहले आप स्नानादि के उपरांत जनेऊ को गंगाजल से शुद्ध कर लेने के पश्चात अपने दोनों हाथों में जनेऊ को पकड़ें फिर यह मंत्र पढ़ें | 

ॐ यज्ञोपवीतम् परमं पवित्रं प्रजा-पतेर्यत -सहजं पुरुस्तात। आयुष्यं अग्र्यं प्रतिमुन्च शुभ्रं यज्ञोपवितम बलमस्तु तेजः।। 

इसके बाद गायत्री मन्त्र का कम से कम 11 बार उच्चारण करते हुए जनेऊ या यज्ञोपवित धारण करना चाहिए |

पुष्प चढ़ाने का मंत्र (Mantra of offering flowers)

पुष्प चढ़ाने का मंत्र इस प्रकार है:- 

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥ 

मां लक्ष्मी की पूजा करते वक्त उन्हें कमल का फूल अर्पितअवश्य करना चाहिए, यह फूल उन्हें बेहद प्रिय है |

रक्षाबंधन मंत्र:-        

येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि ,रक्षे माचल माचल:। 

इस मन्त्र का अर्थ है कि “जो रक्षा धागा परम कृपालु राजा बलि को बाँधा गया था, वही पवित्र धागा मैं तुम्हारी कलाई पर बाँधता हूँ, जो तुम्हें सदा के लिए विपत्तियों से बचाएगा”।    

कुशोत्पाटन मंत्र:-                  

कुशाग्रे वस्ते रूद्रः कुशमध्ये तु केशवः।

कुशमूले वसेद्‌ ब्रह्मा कुशन्मे देहि मेदिनी।

कुशोऽसिकुशपुत्रोऽसि ब्रह्मणा निर्मिता पुरा।

देवपितृ हितार्थाय कुशमुत्पाट्याम्यहम्‌।                  

कुश उखाड़ने की प्रक्रिया:- 

कुश उखाड़ने के लिए सूर्योदय का समय सर्वश्रेष्ठ माना गया है | नित्य क्रिया से पवित्र होकर अमावस्या के दिन दर्भस्थल में पूर्व या उत्तर दिशा  की तरफ मुंह करके बैठें | फिर कुश  उखाड़ने से पहले प्रार्थना करें | 

ऊँ हूँ फट् मंत्र का उच्चारण करते हुए दाहिना हाथ से कुश उखाड़ने की प्रक्रिया शुरू करें |   

देवोत्थान एकादशी पूजन मंत्र – देव उठाओन मंत्र (Devutthana Ekadashi Mantra, Dev Uthani Mantra) 

देवोत्थान मंत्र:-  

ब्रह्मेन्द्ररुद्रैरभिवन्द्यमानो भवानृषिर्वन्दितवन्दनीय:।

प्राप्ता तवेयं किल कौमुदाख्या जागृष्व जागृष्व च लोकनाथ।

मेघा गता निर्मलपूर्णचन्द्र-शारद्यपुष्पाणि मनोहराणि।

अहं ददानीति च पुण्यहेतोर्जागृष्व जागृष्व च लोकनाथ॥

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते।

त्वया चोत्थीयमानेन प्रोत्थितं भुवनत्रयम् ॥

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥                   

जनक दुलारी माता सीता जी के 108 नाम (Janak Nandni Mata Sita Ke 108 Naam)

भूमि से उत्पन्न माता सीता को लक्ष्मी का अवतार माना जाता है, जो मिथिला के धिया-सिया जनक दुलारी हैं |

मिथिला की बेटी सीता जी को ‘मैथिली’ के नाम से भी जानते हैं | इनके नाम स्मरण मात्र से ही सभी तरह के पाप-दोष  से मुक्ति मिल जाती है | 

यह भी कहा गया है  उनके नाम का जाप करने से भगवती लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है | और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है,माता सीता जी के 108 नामों  के मंत्र निम्न है |

1. ॐ सीतायै नमः

2. ॐ रामायै नमः

3. ॐ लक्ष्म्यै नमः

4. ॐ जनककन्यकायै नमः

5. ॐ जनकनन्दिन्यै नमः

6. ॐ लोकजनन्यै नमः

7. ॐ जयवृद्धिदायै नमः

8. ॐ जयोद्वाहप्रियायै नमः

9. ॐ राजीवसर्वस्वहारिपादद्वयाञ्चितायै नमः

10. ॐ मणिहेमविचित्रोद्यत्रुस्करोत्भासिभूषणायै नमः

11. ॐ नानारत्नजितामित्रकाञ्चिशोभिनितम्बिन्यै नमः

12. ॐ देवदानवगन्धर्वयक्षराक्षससेवितायै नमः

13. ॐ सकृत्प्रपन्नजनतासंरक्षणकृतत्वरायै नमः

14. ॐ एककालोदितानेकचन्द्रभास्करभासुरायै नमः

15. ॐ द्वितीयतटिदुल्लासिदिव्यपीताम्बरायै नमः

16. ॐ त्रिवर्गादिफलाभीष्टदायिकारुण्यवीक्षणायै नमः

17. ॐ चतुर्वर्गप्रदानोद्यत्करपङ्जशोभितायै नमः

18. ॐ पञ्चयज्ञपरानेकयोगिमानसराजितायै नमः

19. ॐ षाड्गुण्यपूर्णविभवायै नमः

20. ॐ सप्ततत्वादिदेवतायै नमः

21. ॐ अष्टमीचन्द्ररेखाभचित्रकोत्भासिनासिकायै नमः

22. ॐ नवावरणपूजितायै नमः

23. ॐ रामानन्दकरायै नमः

24. ॐ रामनाथायै नमः

25. ॐ राघवनन्दितायै नमः

26..ॐ रामावेशितभावायै नमः

27. ॐ रामायत्तात्मवैभवायै नमः

28. ॐ रामोत्तमायै नमः

29. ॐ राजमुख्यै नमः

30. ॐ रञ्जितामोदकुन्तलायै नमः

31. ॐ दिव्यसाकेतनिलयायै नमः

32. ॐ दिव्यवादित्रसेवितायै नमः

33. ॐ रामानुवृत्तिमुदितायै नमः

34. ॐ चित्रकूटकृतालयायै नमः

35. ॐ अनुसूयाकृताकल्पायै नमः

36. ॐ अनल्पस्वान्तसंश्रितायै नमः

37. ॐ विचित्रमाल्याभरणायै नमः

38. ॐ विराथमथनोद्यतायै नमः

39. ॐ श्रितपञ्चवटीतीरायै नमः

40. ॐ खद्योतनकुलानन्दायै नमः

41. ॐ खरादिवधनन्दितायै नमः

42. ॐ मायामारीचमथनायै नमः

43. ॐ मायामानुषविग्रहायै नमः

44. ॐ छलत्याजितसौमित्र्यै नमः

45. ॐ छविनिर्जितपङ्कजायै नमः

46. ॐ तृणीकृतदशग्रीवायै नमः

47. ॐ त्राणायोद्यतमानसायै नमः

48. ॐ हनुमद्दर्शनप्रीतायै नमः

49. ॐ हास्यलीलाविशारदायै नमः

50. ॐ मुद्रादर्शनसन्तुष्टायै नमः

51. ॐ मुद्रामुद्रितजीवितायै नमः

52. ॐ अशोकवनिकावासायै नमः

53. ॐ निश्शोकीकृतनिर्जरायै नमः

54. ॐ लङ्कादाहकसङ्कल्पायै नमः

55. ॐ लङ्कावलयरोधिन्यै नमः

56. ॐ शुद्धिकृतासन्तुष्टायै नमः

57. ॐ शुमाल्याम्बरावृतायै नमः

58. ॐ सन्तुष्टपतिसंस्तुतायै नमः

59. ॐ सन्तुष्टहृदयालयायै नमः

60. ॐ श्वशुरस्तानुपूज्यायै नमः

61. ॐ कमलासनवन्दितायै नमः

62. ॐ अणिमाद्यष्टसंसिद्ध नमः

63. ॐ कृपावाप्तविभीषणायै नमः

64. ॐ दिव्यपुष्पकसंरूढायै नमः

65. ॐ दिविषद्गणवन्दितायै नमः

66. ॐ जपाकुसुमसङ्काशायै नमः

67. ॐ दिव्यक्षौमाम्बरावृतायै नमः

68. ॐ दिव्यसिंहासनारूढायै नमः

69. ॐ दिव्याकल्पविभूषणायै नमः

70. ॐ राज्याभिषिक्तदयितायै नमः

71. ॐ दिव्यायोध्याधिदेवतायै नमः

72. ॐ दिव्यगन्धविलिप्ताङ्ग्यै नमः

73. ॐ दिव्यावयवसुन्दर्यै नमः

74. ॐ हय्यङ्गवीनहृदयायै नमः

75. ॐ हर्यक्षगणपूजितायै नमः

76. ॐ घनसारसुगन्धाढ्यायै नमः

77. ॐ घनकुञ्चितमूर्धजायै नमः

78. ॐ चन्द्रिकास्मितसम्पूर्णायै नमः

79. ॐ चारुचामीकराम्बरायै नमः

80. ॐ योगिन्यै नमः

81. ॐ मोहिन्यै नमः

82. स्तम्भिन्यै नमः

83. ॐ अखिलाण्डेश्वर्यै नमः

84. ॐ शुभायै नमः

85. ॐ गौर्यै नमः

86. ॐ नारायण्यै नमः

87. ॐ प्रीत्यै नमः

88. ॐ स्वाहायै नमः

89. ॐ स्वधायै नमः

90. ॐ शिवायै नमः

91. ॐ आश्रितानन्दजनन्यै नमः

92. ॐ भारत्यै नमः

93. ॐ वाराह्यैः नमः

94. ॐ वैष्णव्यै नमः

95. ॐ ब्राह्म्यैः नमः

96. ॐ सिद्धवन्दितायै नमः

97. ॐ षढाधारनिवासिन्यै नमः

98. ॐ कलकोकिलसल्लापायै नमः

99. ॐ कलहंसकनूपुरायै नमः

100. ॐ क्षान्तिशान्त्यादिगुणशालिन्यै नमः

101. ॐ कन्दर्पजनन्यै नमः

102. ॐ सर्वलोकसमारध्यायै नमः

103. ॐ सौगन्धसुमनप्रियायै नमः

104. ॐ श्यामलायै नमः

105. ॐ सर्वजनमङ्गलदेवतायै नमः

106. ॐ वसुधापुत्र्यै नमः

107. ॐ मातङ्ग्यै नमः

108. ॐ राजत्कनकमाणिक्यतुलाकोटिविराजितायै नमः 

हमें नित्य रोज प्रातः इन मंत्रों का जाप करना चाहिए | इस मंत्र का जाप करने से हमारे जीवन में आने वाले किसी भी प्रकार के संकट दूर होते हैं तथा घर में सुख शांति बनी रहती है |

गणेश जी को फूल चढ़ाते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए ? 

जैसा कि आप जानते हैं कि सनातन धर्म में कोई भी शुभ कार्य करने से पहले हम भगवान करें इसकी आराधना करते हैं | इसलिए सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा तथा फूल चढ़ाते समय इस मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए :- 

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ | निर्विघ्नम कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा सर्वदा ||  

घर में पूजा करते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए ? 

घर में पूजा करते समय इस मंत्र का जाप अवश्य करें | इस मंत्र का नियमित जाप करने से लाभ मिलता है साथ ही कई तरह की परेशानियां दूर होती है | 

करपुर गौरम करुणावतारं संसारसारं भुजगेंद्रहारम | सदा वसंतम हृदयारविंदे भमं भवानी सहीतम नमामि ||  

आरती खड़े होकर ही क्यों की जाती है ?  

अगर आप पूजा के बाद आरती करते हैं तो यह भी जान लेना जरूरी है कि आरती हमेशा खड़े होकर ही करनी चाहिए | सनातन धर्म का मानना है कि खड़े होकर आरती करने से ईश्वर के प्रति सम्मान को दर्शाता है | 

जब हम किसी विशिष्ट व्यक्ति के प्रति आदर सत्कार दिखाते हैं तो उनके सम्मान में खड़े हो जाते हैं तो, भगवान के लिए क्यों नहीं ? यही कारण है कि पूजा के बाद आरती करते समय भगवान के सम्मान के लिए खड़े होना जरूरी माना गया है |

अक्षत मंत्र

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकमाक्ता: सुशोभिता:. मया निवेदिता भक्त्या: गृहाण परमेश्वर॥ 

इस मंत्र का अर्थ है कि हे भगवान, पूजा में कुंकुम के रंग से सुशोभित यह अक्षत मैं आपको समर्पित करता हूं, कृपया आप इसे स्वीकार करें | 

साथियों, इस आर्टिकल के माध्यम से हमने Durva Akshat Mantra विधि और अर्थ तथा अन्य उपयोगी मंत्रों की जानकारी दी है | आपको यह जानकारी अच्छी लगी, तो यह आप अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर Share कर सकते हैं | 

तो फिर मिलते हैं आपसे अगले आर्टिकल में एक नई जानकारी के साथ, तब तक के लिए आप zeebiz.in पर हमारे साथ जुड़े रहें | धन्यवाद !

FAQ:

Q: पूजा करते समय क्या बोलना चाहिए ?

Ans: आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् | पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर || मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन | पूजाके अंत में क्षमा मांगने के लिए यह मंत्र बोलना चाहिए |

Q: दूर्वा चढ़ाने से क्या होता है ?

Ans. दुर्वा एक प्रकार का पवित्र घास है जिसका इस्तेमाल हिंदू धर्म में  गणेश पूजन के लिए किया जाता है | 

मान्यता है कि जो भक्त इस घास को गणेश पूजन में नियमित रूप से अर्पित करते हैं उनकी समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं | 

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